बुधवार, 26 नवंबर 2008

- पॉडकास्ट पुस्तक समीक्षा

पुस्तक - साया (काव्य संग्रह)

लेखिका - रंजना भाटिया "रंजू"
समीक्षक - दिलीप कवठेकर


युगों पहले जिस दिन क्रौंच पक्षी के वध के बाद वाल्मिकी के मन में करुणा उपजी थी, तो उनके मन की संवेदनायें छंदों के रूप में उनकी जुबान पर आयी, और संभवतः मानवी सभ्यता की पहली कविता नें जन्म लिया.तब से लेकर आज तक यह बात शाश्वत सी है, कि कविता में करुणा का भाव स्थाई है. अगर किसी भी रस में बनी हुई कविता होगी तो भी उसके अंतरंग में कहीं कोई भावुकता का या करुणा का अंश ज़रूर होगा.

रंजना (रंजू) भाटिया की काव्य रचनायें "साया" में कविमन नें भी यही मानस व्यक्त किया है,कहीं ज़ाहिर तो कहीं संकेतों के माध्यम से. इस काव्यसंग्रह "साया" का मूल तत्व है -

ज़िंदगी एक साया ही तो है,
कभी छांव तो कभी धूप ...


मुझे जब इस कविता के पुष्पगुच्छ को समीक्षा हेतु भेजा गया, तो मुझे मेरे एहसासात की सीमा का पता नहीं था. मगर जैसे जैसे मैं पन्ने पलटता गया, अलग अलग रंगों की छटा लिये कविताओं की संवेदनशीलता से रु-ब-रु होने लगा, और एक पुरुष होने की वास्तविकता का और उन भावनाओं की गहराई का परीमापन करने की अपनी योग्यता, सामर्थ्य के कमी का अहसास हुआ.

जाहिर सी बात है. यह सन्मान, ये खुसूसियत मात्र एक नारी के नाज़ुक मन की गहराई को जाता है.मीठी मीठी मंद सी बयार लिये कोमल संवेदनायें, समर्पण युक्त प्रेम, दबी दबी सी टीस भरी खामोशी की अभिव्यक्ति, स्वप्नों की दुनिया की मासूमियत , इन सभी पहलूओं पर मात्र एक नारी हृदय का ही अधिपत्य हो सकता है. प्रस्तुत कविता की शृंखला ' साया 'में इन सभी विशेषताओं का बाहुल्य नज़र आता है.

कविता हो या शायरी हो, कभी उन्मुक्त बहर में तो कभी गेय बन्दिश में, कभी दार्शनिकता के खुले उत्तुंग आसमान में तो कभी पाठ्यपुस्तक की शैली हो, सभी विभिन्न रंगों में चित्रित यह भावचित्र या कलाकृति एक ही पुस्तक में सभी बातें कह जाती है, अलग अलग अंदाज़ में, जुदा जुदा पृष्ठभूमि में. मीरा का समर्पण है,त्याग की भावना है और साथ ही कमाल की हद तक मीर की अदबी रवानी और रिवायत भी.

आगे एक जगह फ़िर चौंक पडा़, कि सिर्फ़ स्त्री मन का ही स्वर नहीं है, मगर पुरुष के दिल के भीतर भी झांक कर, उसके नज़रीये से भी भाव उत्पत्ति की गई है . ये साबित करती है मानव संबंधों की विवेचना पर कवियत्री की पकड जबरदस्त है. साथ ही में विषयवस्तु पर उचित नियंत्रण और परिपक्वता भी दर्शाती है.

रन्जु जी के ब्लोग पर जा कर हम मूल तत्व की पुष्टि भी कर लेतें है, जब एक जगह हम राधा कृष्ण का मधुर चित्र देखते है, और शीर्षक में लिखा हुआ पाते हैं- मेरा पहला प्यार !!!

उनके प्रस्तुत गीत संग्रह के प्रस्तावना "अपनी बात" में वे और मुखर हो ये लिखती हैं कि:

"जीवन खुद ही एक गीत है, गज़ल है, नज़्म है. बस उसको रूह से महसूस करने की ज़रूरत है. उसके हर पहलु को नये ढंग से छू लेने की ज़रूरत है."

सो ये संग्रह उनके सपनों में आते, उमडते भावों की ही तो अभिव्यक्ति है, जीवन के अनुभव, संघर्ष, इच्छाओं और शब्दों की अभिव्यक्ति है.

मेरा भी यह मानना है, कि हर कवि या कवियत्री की कविता उसके दिल का आईना होती है. या यूं कहें कि कविता के शैली से, या बोलों के चयन से अधिक, कविता के भावों से हम कविहृदय के नज़दीक जा सकते है, और तभी हम साक्षात्कार कर पाते हैं सृजन के उस प्रवाह का, या उसमें छिपी हुई तृष्णा के की सांद्रता का. तब जा कर कवि और कविता का पाठक से एकाकार हो रसोत्पत्ति होती है, और इस परकाया प्रवेश जैसे क्रिया से आनंद उत्सर्ग होता है. व्यक्ति से अभिव्यक्ति का ये रूपांतरण या Personification ही कविता है.

अब ज़रा कुछ बानगी के तौर पर टटोलें इस भावनाओं के पिटारे को:

संवेदना-

दिल के रागों नें,
थमी हुई श्वासों ने,
जगा दी है एक संवेदना......
(Sayaa 7)

अजब दस्तूर-

ज़िन्दगी हमने क्या क्या न देखा,
सच को मौत के गले मिलते देखा
(Saayaa )

जाने किस अनजान डगर से
पथिक बन तुम चले आये...

काश मैं होती धरती पर बस उतनी
जिसके ऊपर सिर्फ़ आकाश बन तुम चल पाते....

ऐसा नहीं है कि यह कविता संग्रह संपूर्ण रूप से मुकम्मल है, या इसमें कोई कमी नहीं है.

जैसा कि इस तरह के प्रथम प्रस्तुतिकरण में अमूमन होता चला आया है, कि रंगों की या रसों की इतनी बहुलता हो जाती है, कि कभी कभी वातवरण निर्मिती नही हो पाती है, और पाठक कविता के मूल कथावस्तु से छिटका छिटका सा रहता है.मगर ये क्षम्य इसलिये है, कि इस तरह के संग्रह को किसी जासूसी नॊवेल की तरह आदि से लेकर अंत तक अविराम पढा़ नहीं जा सकता, वरन जुगाली की तरह संत गति से विराम के क्षणों में ही पढा़ जाना चाहिये.

हालांकि इन कविताओं में काफ़िया मिलाने का कोई यत्न नहीं किया गया है, ना ही कोई दावा है, मगर किसी किसी जगह कविता की लय बनते बनते ही बीच में कोई विवादी शब्द विवादी सुर की मानिंद आ जाता है, तो खटकता है, और कविता के गेय स्वरूप की संभावनाओं को भी नकारता है.

संक्षेप में , मैं एक कवि ना होते हुए भी मुझे मानवीय संवेदनाओं के कोमल पहलु से अवगत कराया, रंजु जी के सादे, सीधे, मगर गहरे अर्थ वाले बोलों नें, जो उन्होने चुन चुन कर अपने अलग अलग कविता से हम पाठकों के समक्ष रखे हैं. वे कहीं हमें हमारे खुदी से,स्वत्व से,या ब्रह्म से मिला देते है, तो कभी हमें हमारे जीवन के घटी किसी सच्ची घटना के अनछुए पहलु के दर्शन करा देते है.क्या यही काफ़ी नही होगा साया को पढने का सबसे बडा़ कारण?

दिलीप जी की आवाज़ में कुछ साया की रचनाये आप यहाँ सुन सकते हैं ...आवाज़






साया की समीक्षा नए अंदाज में ..


नए राग से बांधे अक्सर बिछडे स्वर टूटी सरगम के...हिन्दी ब्लॉग जगत पर पहली बार - पॉडकास्ट पुस्तक समीक्षा
साया की समीक्षा हिंद युग्म आवाज़ पर न केवल आप पढ़ सकते हैं । साया की कुछ कविताएं आप दिलीप जी की मधुर आवाज़ में सुन भी सकते हैं ....मुझे इस पर आप सबके विचारों का इन्तजार रहेगा ...

रविवार, 23 नवंबर 2008

प्रथम काव्य संग्रह साया

मेरे द्वारा लिखित पहला काव्य संग्रह .आज पब्लिश हो कर मेरे सामने हैं ....,जिसका सपना मैंने कम और मेरी बेटियों ने ज्यादा देखा :) और इसको लिखने का पब्लिश करवाने का होंसला दिया आप सब पढने वालों ने ..यदि आप सबका इतना प्यार साथ न होता तो शायद मैं अपनी लिखी कविताओं को यूँ किताब के रूप में कभी न ला पाती....इस लिए मैं इसका लोकापर्ण यही चिटठापर्ण के रूप में कर रही हूँ ...आप सबके स्नेह ने ही मुझे आज इस मुकाम तक पहुँचाया है | इस काव्य संग्रह में मैंने अपनी हर तरह की कविता को समेटने की कोशिश की है ..इस में प्यार की मीठी फुहार भी है ...और विरह का दर्द भी है ..

मोहब्बत अगर कभी गुजरो
मेरे दिल से दरवाजे से हो कर
तो बिना दस्तक दिए
दिल में चली आना
की तुम्हारे ही इन्तजार में
मैंने एक उम्र गुजारी है ..[साया से ]

इस किताब में शुरुआत राकेश खंडेलवाल जी के शब्दों से हुई है .| कभी उनसे मुलकात नही हुई है पर उनकी लिखी कविताएं हमेशा मेरे लिए प्रेरणा का स्रोत रहीं है | मैं उनका तहे दिल से शुक्रिया अदा करती हूँ | इस काये संग्रह को अब तक जिन्होंने लिया उन में से कुछ ने अपने विचार भी दिए कुछ जगह इसकी समीक्षा भी आयीं है ..वह सब मैं यहाँ आप देख सकते हैं ..अभी तक जिन्होंने इसको लिया उनका तहे दिल से धन्यवाद ..और बाकी जो लेना चाहे वह इस आई डी पर सम्पर्क कर सकते हैं ..किताब की कीमत महज १२०+ वी पी पी चार्जेस समेत १५० रुपीस है ..धन्यवाद

साया पर आए विचार

साया अब तक बहुत से लोग पढ़ चुके हैं .. इस को पढ़ कर कुछ पाठकों ने अपने विचार मुझे मेल से भेजे ,कुछ ने ऑरकुट पर स्क्रैप से बताये ..


और आज भी इन झाकंती आंखों से
जैसे दिल में एक हूक सी उठ जाती है
आज भी तेरे प्यार की रौशनी
मेरे जीने का एक सहारा बन जाती है !!

" i am reading your book, and your creations are commendable, each poem has so deep touching feeling, the poetry on 'ma' is really written from soul not from heart, each word has touched my heart'

रेगार्ड्स
सीमा गुप्ता

Again wish you good luck and heartiest congratulation for completion of your dream project. and I am the 'lucky one' to get your first book in my hand. thanks for consedering me your lucky charm' i dont know why but i am very very happy for getting your book and for you also.wish you good luck for many such books to be published in future'

With love ya
seema gupta


मुझे आपकी pustak का कवर बेहद अच्छा लगा.


और आज भी इन झाकंती आंखों से
जैसे दिल में एक हूक सी उठ जाती है
आज भी तेरे प्यार की रौशनी
मेरे जीने का एक सहारा बन जाती है !!

रंजू जी,
आपका साया पढा। सच तो यह इसे दुबारा पढा जाना चाहिए। क्या पता फिर से एक नया फूल खिलता हुआ मिल जाए। मै हर रचना पढता गया। जो अच्छी लगी उसे टिक भी करता गया। और जब देखा कि कितने पे टिक किया तो उनकी सख्या ज्यादा थी। इसके बाद भी लगता है मुझे लगता कि इसे दुबारा पढना होगा। आपके मन के ज़ज्बात फूल बन के महके है। कुछ खूशबू हमारे तक भी आई है कुछ फूल एक ही तरह के थे। पर महक में फर्क था। वैसे कहूँ कि शुरु में ही आपने प्रभाव डाल दिया यह लिखकर कि
जरा थम के रफ्ता ............. जाए।।
और आखिर में आपने प्रभाव डाला।
रिश्तों से बंधी .......... जीने दे॥
साथ में ये भी कहूँगा कि आखिर में छोटे छोटे फूल बहुत महका गए।
अब आप कहेगी कि कमी तो बताई नही मैने। तो मैं यही कहूँगा कि जो दिल से लिखा जाता है उसमें कोई कमी नही होती। बस इतना कहूँगा कि प्यार के फूल के अलावा और फूल होते है वो कम ही नजर आए बस। पर वो कोई गल नही। अगर मेरी पहली किताब आती वो भी कुछ इस तरह ही होती। अभी तो बहुत किताबे लिखनी है आपने। तब सारे फूलों का जिक्र हो जाऐगा। बहुत अच्छा लिखती है जारी रहिए। एक दिन अपने अस्तिव की मंजिल जरुर मिल जाऐगी।

सुशील कुमार छोकर


रंजना जी
उम्मीद है आप प्रसन्न होंगी...सबसे पहले क्षमा इस बात के लिए की आप को इतनी अच्छी किताब लिख पाने की बधाई नहीं दे पाया...दर-असल किताब क्या है जिंदगी का फलसफा है...जितनी बार पढो नए नए रंग उभर कर सामने आते हैं...हर रचना कमाल की है...किसी एक की तारीफ करना दूसरी के साथ ना इंसाफी वाली बात होगी...अभी उसे पूरा नहीं पढ़ा है...सच कहूँ तो ऐसी किताब कभी पूरी नहीं पढ़ी जा सकती...जितना पढो लगता है कुछ छूट गया है...आप मुझे समय दें तो ही और कुछ कह पाउँगा...अभी वो किताब मेरी श्रीमती जी ने अपने पास रख ली है..इस बार जब जयपुर गया तो साथ लेता गया था...उसने देखी और बिना पढ़े लौटाने से मना कर दिया...याने आप के प्रशंशंकों में एक का इजाफा हो गया...बधाई हो...

नीरज गोस्वामी


साया पढने में मैं भूल गई कि आप रंजू हैं
कभी महादेवी,कभी गुलजार याद आते रहे.........

रश्मि

कुछ कवितायें दिल से लिखी है और कुछ दिमाग से ! दर्द के साथ कुछ और दर्द है ! गम के साए में आपका "साया" एक खुबसूरत संग्रह है - शायद यह आपके दिल से काफी नजदीक है , मुझे पसंद आया औरों को भी पसंद आएगा !


मुखिया जी ...

रश्मि प्रभा ने कहा…

सच है......साया जीवन के जाने कितने सायों को मुखर बनाती है,
कही भी विराम देने की ख्वाहिश नहीं हुई,
कलम लिए शब्दों ,भावनाओं की धनी रंजना जी ने जीवन को शब्दों
से भर दिया, कई बार,कई जगह अमृता,महादेवी,गुलज़ार मिले.........
यानि इतनी सशक्त लेखनी दिखी.....अन्य संग्रहों का क्रमशः इंतज़ार रहेगा

Dear ranjana,
I read all your poems , main ab kis kis ki tareef karun , sab ek se badkar ek hai ..
saari ki saari kavitayen bahut sundar hai , bhaavpoorn hai . aur dil ko chooti hui nikalti hai ..
kuch nazmen aisi thi ki main ne socha ki un par kuch kahun , par phir wahi confusion , dusari nazm pahle se behatar thi ..
ab sochta hoon ki , kuch alag alag kahne se accha hai ki , sabki ek saath tareef karun .
aapko bahut bahut badhai ..
vijay




हिन्दुस्तान हिन्दी में साया की समीक्षा



हिन्दी अखबार हिन्दुस्तान में मनविंदर द्बारा इस किताब की समीक्षा की गई ..आप इस लिंक को बड़ा कर के पढ़ सकते हैं ....

हिंद युग्म पर साया की बात

प्यार के एक पल ने जन्नत को दिखा दिया
प्यार के उसी पल ने मुझे ता -उम्र रुला दिया
एक नूर की बूँद की तरह पिया हमने उस पल को
एक उसी पल ने हमे खुदा के क़रीब ला दिया !!


हिन्दी-चिट्ठाकारी से जुड़े लोगों में ऎसा कौन होगा जो इन पंक्तियों की लेखिका "रंजना भाटिया" से नावाकिफ़ हो।रंजना भाटिया चिट्ठा-जगत में एक जाना-माना नाम है। हिन्द-युग्म खुद को इसलिए सौभाग्यशाली मानता है,क्योंकि यह नाम सबसे ज्यादा युग्म के करीब है। जाने कितनी हीं कविताओं, कहानियों और बाल-रचनाओं से इन्होंने युग्म को सुशोभित किया है

मूल रूप से हरियाणा के रोहतक जिले के कलनौर की रंजू (प्रशंसकों के बीच इसी नाम से प्रसिद्ध हैं ) हरिवंश राय बच्चन, अमृता प्रीतम और दुष्यंत कुमार को पढना ज्यादा पसंद करती हैं। इन मनीषियों के लेखन का असर हीं था कि रंजू जी में बचपन से हीं साहित्य ने घर कर लिया था। बालपन में कविताएँ कैसे जनमती हैं, इसके बारे में याद करते हुए ये कहती हैं-"
यूँ ही एक बार हमारे घर की परछती पर रहने वाली एक चिडिया पंखे से टकरा मर गई उसको हमारी पूरी टोली ने बाकयदा एक कापी के गत्ते को पूरी सजा धजा के साथ घर के बगीचे में उसका अन्तिम संस्कार किया था और मन्त्र के नाम पर जिसको जो बाल कविता आती थी वह बोली थी बारी बारी .. मैंने बोली थी..चूँ चूँ करती आई चिडिया स्वाहा ..दाल का दाना लायी चिडिया स्वाहा...:)" अब तक इनकी कई कविताएँ दैनिक जागरण,अमर उजाला और भाटिया प्रकाश[मासिक पत्रिका] आदि में छप चुकी हैं।

हाल में हीं रंजू जी की पुस्तक "साया" प्रकाशित हुई है। पुस्तक-प्रकाशन से जु्ड़े महत्त्वपूर्ण पलों को याद करते हुए ये कहती हैं-
"किताब का काम मैंने इसके पब्लिश होने से महीने पहले शुरू कर दिया था ..अभी तक मैं हजारों की संख्या में कविताएं लिख चुकी हूँ ..कहाँ कब पोस्ट करी अब यह मुझे भी ठीक से याद नही हैं :) पर एक बार एक नियमित पाठक ने सबके लिंक समेत मुझे मेरी लिखी कविताओं के लिंक भेजे तब मैंने जाना :) उस में से जो बहुत पसंद की गई थी वह चुनी और कुछ जो मुझे पसंद थी वह ली इस तरह कुल मिला कर यह ५२ रचनाये हैं जो ९५ पृष्ठों मेंसिमटी हुई है ..."

हिन्द-युग्म को गर्व है कि रंजू जी जैसी प्रतिभाशाली कवयित्री या यूँ कहिए रचनाकार(कविता, कहानी, बाल-साहित्य सबमें इनके हस्ताक्षर दर्ज हैं) अपनी मंजिल की ओर अग्रसर हैं। इस पुस्तक के प्रकाशन के बाद इन पंक्तियों के लेखक ने रंजू जी से बातें कीं। प्रस्तुत है उस साक्षात्कार के कुछ अंश-

हिंद-युग्म: रंजना जी, सर्वप्रथम तो आपके पहले काव्य-संग्रह के लिए आपको ढेरों बधाईयाँ!
रंजू:बहुत-बहुत शुक्रिया।

हिंद-युग्म: अंतर्जाल पर "रंजना भाटिया" एक चर्चित नाम है. कुछ महिने पूर्व हीं हिंदी-चिट्ठाकारों ने आपको एक सम्मान(स्वर्ण-कमल) से नवाज़ा था। क्या इसी प्रसिद्धि ने आपको अपना काव्य-संग्रह प्रकाशित करवाने को प्रेरित किया या और कोई वज़ह थी?
रंजू: प्रसिद्ध नाम है ? वाह शुक्रिया .:) .नही उस सम्मान से प्रेरित हो कर यह काव्य संग्रह नही आया है ..काव्यसंग्रह के रूप में लाने की भूमिका और विचार इस सम्मान को मिलने से पहले ही बन चुका था .. मेरी कविता को पढने वाले .पसंद करने वाले बहुत से लोगों का अनुरोध था कि यह सब एक किताब के रूप में उनके पास रहे ..और जैसा की मैंने पहले भी बताया है ..कि मेरी दोनों बेटियाँ बहुत अधिक इच्छुक थी इस किताब के लिए .. .पर हर कामका वक्त तय होता है ..सो यह अभी आया ...हाँ स्वर्ण कलम जब मिला तो कई लोगो के लिए मेरा नाम अपरिचित था ,कई तरह की बातें भी सुनी इसी संदर्भ में ..उसी वक्त दिल में ठान लिया था कि जब सब लोगों ने इतना विश्वास जताया है तो हिन्दी ब्लॉग लिखने की दिशा में ठोस कार्य करना है और एक मुकाम बनाना है .तब से निरंतर उसी दिशा में आगे बढ़ने की कोशिश में लगीं हूँ ..साहित्य और ब्लॉग की दुनिया के बारे में निरंतर लिख रही हूँ ..बाकी आप सब का सहयोग अब तक इस दिशा में मिला है आगे भी चाहती हूँ ..

हिंद-युग्म: आपने अपनी पुस्तक का शीर्षक "साया" हीं क्यों चुना.....कोई खास कारण?
रंजू: साया ही क्यूँ चुना नाम .? .[रोचक प्रश्न है :) ] जब किताब लिखने के बारे में सोचा तो यही नाम आया दिमाग में .इसका कारण यह था कि हम सब एक कल्पना बना कर ही उसी के बारे में लिखते हैं .हर किसी के दिलो दिमागपर कोई अक्स ,चाहे वह किसी बहुत अपने का हो या कह ले कि कोई सपना सा हर कोई बुन लेता है और फ़िर उसकोसंबोधित कर के लिखता है ..दार्शनिक भाषा में कहे तो यह ज़िन्दगी ही एक साया है जिसके पीछे हम निरन्तर भागते रहते हैं ..और हाथ में अंत तक कुछ नही आता ...:) ..बहुत पहले से ही जब मैंने लिखना शुरू किया .ख़ासकर कविता तो मेरे जहन में एक साया सा साथ रहता है ..और फ़िर सब लिखा जाता ..कभी उस साए ने कोई चेहरा नहीं लिया बस सामने रहा यूँ ही ..:) सो इसका नाम साया रखा



हिंद-युग्म: अमूमन आप प्रेम-कविताएँ लिखती हैं। क्या "साया" भी प्रेम-कविताओं का संग्रह है, या फिर पाठकों को काव्य के दूसरे रसों के रसास्वादन का भी अवसर प्राप्त होगा?
रंजू: हाँ मैंने अधिकतर प्रेम रस में डूबी ही कविता लिखी है .पर इस किताब में आपको सभी रस देखने को मिलेंगे इस में दर्द भी है ..सूफी सा लिखा भी है और आम ज़िन्दगी से जुडा हुआ भी है ....

जैसे ज़िन्दगी से जुड़ी कुछ पंक्तियाँ हैं ..

..
नयनों का हर ख्वाब है यहाँ टूटा
रंग है पर कैनवास लगता है झूठा
मिलते यदि सच्चे रंग प्यार के मुझको
तो यह दिल रंग भरे ख्वाब सजा लेता .....

या प्यार से जुड़ी पंक्तियाँ है ..

कोई भी हो मेरे सिवा प्यारा ज़िन्दगी में तेरी
बस मेरी आरजू ,मेरी मोहब्बत हो त्रिशंगी में तेरी
इन उम्मीदों को मेरी वफ़ा दो तो मानूँ
कुछ वादे मोहब्बत के हँस के निभा तो जानूँ

तब तेरे प्यार को मैं सच मानूँ ...

इसी तरह से सब रंग समेटने कि कोशिश कि है मैंने इस में ..अब लोग इसको कितना पसंद करते हैं ...यह तो किताब पढने वालो के विचारों को जान कर ही
पता चलेगा :)


हिंद-युग्म: आप हिंद-युग्म की एक सक्रिय सदस्य रही हैं....हिंद-युग्म को आपने अपनी रचनाओं से सुशोभित किया है। साथ हीं साथ आपके दो व्यक्तिगत ब्लाग्स भी हैं। पाठक यह जानना चाहेंगे कि "साया" में संग्रहित रचनाएँ नई हैं या कुछ पहले भी युग्म पर या आपके ब्लाग पर प्रकाशित हो चुकी हैं?
रंजू: इस संग्रह में कुछ मेरे ब्लॉग से और कुछ हिंद युग्म से हैं रचनाये जो लोगों ने बहुत पसंद की थी ..कुछ नई भी हैं ..जो अभी तक कहीं पोस्ट नहीं की है |

हिंद-युग्म: प्रथम काव्य-संग्रह प्रकाशित होने का अनुभव कैसा रहा? लोगों की प्रतिक्रियाओं से आप कितनी संतुष्ट हैं?
रंजू: अभी तो यह हाथ में आया है तो नवजात शिशु को छूने जैसी अनुभूति हो रही है ..बहुत अच्छा लगा रहा है । अपनी ही लिखी रचनाओं को एक किताब में एक साथ देखना ...लोगों की प्रथम प्रतिकिर्या बहुत उत्साहजनक मिली है ..बहुत से बधाई संदेश मिले हैं और किताब को पाने का आग्रह भी है ..बाकी आगे देखते हैं :)

हिंद-युग्म: हम सभी जानते हैं कि आप "अमृता प्रीतम" की लेखनी की बहुत बड़ी प्रशंसक रही हैं। उनपर आलेख नियमित रूप से आपके ब्लाग पर नज़र आते हैं। आपकी पुस्तक "साया" क्या उन्हीं को समर्पित है....अमृता प्रीतम की साहित्य-यात्रा पर किसी पुस्तक की कोई योजना?
रंजू: अमृता प्रीतम मेरी गुरु .मेरे लिखने की प्रेरणा रही है शुरू से ही .मेरी कलम से जो कुछ लिखा गया है वह उन्ही के विचारों की ही देन है ..यह एक किताब क्या मेरा पूरा लेखन ही उनको समर्पित है ..हाँ उनके लेखन को ले कर बहुत सी योजनाये हैं दिमाग में ...नई पीढी तक उनके लेखन को पहुंचाना है ..इस दिशा में बहुत काम करना चाहती हूँ ..कुछ इस दिशा में उनको लेकर ब्लॉग में लिख भी रही हूँ ..बाकी आगे जो कुछ लिखूंगी वह भी आपके सामने जल्द ही आएगा | बस वक्त आने दे :)

हिंद-युग्म: इंटरनेट पर बाल-साहित्य एवं कहानी-लेखन पर भी आपने उल्लेखनीय कार्य किया है। भविष्य में इन विधाओं में कोई पुस्तक लिखना चाहेंगी?
रंजू: हाँ जरुर ...बाल उद्यान पर या बच्चो के लिए लिखना मेरे प्रिय विषयों में से एक है ...योजना तो है की बच्चो के लिए एक किताब जिस में विज्ञान से जुड़ी कहानियाँ ,कविताएं ,और रोचक जानकरी हो ..साथ ही बाल साहित्य कुछ इस तरह से रोचक ढंग से प्रकाशित हो कि बच्चो की रूचि किताबों में बनी रहे ..इस पर अभी काम कर रही हूँ कोई अच्छा प्रकाशक मिला तो एक किताब जल्दी ही इस पर भी लाने की योजना है भविष्य में मेरी ..बाकी जो ईश्वर की इच्छा :)

हिंद-युग्म: समकालीन हिंदी-साहित्य क्या सही रास्ते पर है? आपकी दृष्टि में अंतर्जाल पर हिंदी का प्रचार-प्रसार क्या सही तरीके से हो रहा है? आपके अनुसार और क्या किये जाने की आवश्यकता है?
रंजू: अंतरजाल आज सब लोगों तक अपनी पकड़ बना चुका है ..और इस दिशा में बहुत कुछ हो भी रहा है | हिन्दीब्लॉग की संख्या निरन्तर बढ़ रही है ..यह हिन्दी भाषा के लिए एक सुखद बात है ...मेरी दृष्टि में हिन्दी ब्लॉग परयदि सार्थक लिखा जाए और अच्छा लिखा जाए तो यह जल्द ही अपनी पकड़ बना लेगा .पर कई बार यहाँ बहसबेकार की बातों पर हो जाती है वह अच्छा नही लगता है ..ब्लॉग बेशक अपने दिल की बातों को लिखने का बेहतरमाध्यम है पर इस में किसी ध्रर्म विशेष या व्यक्ति विशेष को लेकर लिखना पढ़ना दुखद लगता है ...अच्छा लिखाजाए जो कुछ प्रेरणा भी दे सके ..तो यह हिन्दी प्रसार प्रचार का एक बहुत ही अच्छा माध्यम बन सकता है |

हिंद-युग्म: हिंद-युग्म के बारे में आपके कुछ विचार........
रंजू: हिंद युग्म हिन्दी प्रसार प्रचार की दिशा में बहुत ही बेहतरीन कार्य कर रहा है ..मुझे इसके बाल उद्यान औरआवाज़ बहुत ही अच्छे लगते हैं ..हिंद युग्म से आगे बहुत अपेक्षाएं हैं हिन्दी जगत की ..वह निरंतर आगे बढे औरहिन्दी भाषा को यूँ ही आगे बढाए यही दुआ है मेरी |

हिंद-युग्म: भविष्य में आप इसी तरह सफ़लता का परचम लहराती रहें.....यही कामना एवं दुआ करताहूँ.....आपको पुन: आपकी नई पुस्तके के लिए ढेरों बधाईयाँ
रंजू: बहुत बहुत शुक्रिया ..आप सब का प्यार यूँ ही बना रहे तो यह रास्ता और भी आसान हो जायेगा

हिंद-युग्म: जो लोग पुस्तक मंगाना चाहते हैं.......उन्हें क्या करना होगा? पुस्तक किस तरह उपलब्ध हो सकतीहै?
रंजू: जो यह किताब पढ़ना चाहते हैं वह सीधे मुझसे मेरे मेल आई डी पर मुझसे संपर्क कर सकते हैं ..मैं उन्हेंभिजवा दूंगी यह किताब ..वैसे यह किताब अयन प्रकाशन द्बारा प्रकाशित है .
हिंद-युग्म: आपने अपना कीमती वक्त दिया इसके लिए धन्यवाद।

आईये हम सब एक साथ दुआ करें कि रंजू जी अपने प्रयास में सफ़ल हों और हाँ, हम सब इस पुस्तक की सफ़लतामें भागीदार बन सकते हैं। कैसे? ...आप सब जानते हैं---पुस्तक खरीद कर :)

-विश्व दीपकतन्हा