मानते हो यदि स्वयं को मेरा शिव,
तो शक्ति मान मुझे जीना होगा.
मेरे अधरो पर रख अपने अधर.
मेरे जीवन का पूर्ण विष पीना होगा..
मेरी हर ज्वाला को मेरे हर ताप को.
मन में बसे हर संताप को ...........
अपने शीश धरे गंगा जल से
तुमको ही शीतल करना होगा........
रिक्त पड़े इस हृदय के हर कोने को...........
बस अपने प्रेम से भरना होगा.......
मानते हो यदि स्वयं को मेरा शिव.......
तो शक्ति मान मुझे जीना होगा.
मेरे अधरो पर रख अपने अधर.
मेरे जीवन का पूर्ण विष पीना होगा..
मेरी हर ज्वाला को मेरे हर ताप को.
मन में बसे हर संताप को ...........
अपने शीश धरे गंगा जल से
तुमको ही शीतल करना होगा........
रिक्त पड़े इस हृदय के हर कोने को...........
बस अपने प्रेम से भरना होगा.......
मानते हो यदि स्वयं को मेरा शिव.......
तो शक्ति मान मुझे जीना होगा...............
8 टिप्पणियां:
अपने शीश धरे गंगा जल से
तुमको ही शीतल करना होगा......
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति रंजना जी ....!!
शुभकामनायें ....
सुन्दर भावाभिव्यक्ति रंजना जी..
Bahut sundar abhivyakti Ranjana ji...
Sadar!!
Bahut sundar abhivyakti Ranjana ji...
Sadar!!
वाह आदरेया वाह बेहत गहन भाव पिरोयें हैं ह्रदय के अन्तः स्थल में उतर गई आपकी ये प्रस्तुति. शब्दों की कमी महसूस हो रही है प्रतिक्रिया हेतु. हार्दिक बधाई स्वीकारें
बेहद प्रभाव साली रचना और आपकी रचना देख कर मन आनंदित हो उठा बहुत खूब
आप मेरे भी ब्लॉग का अनुसरण करे
आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
तुम मुझ पर ऐतबार करो ।
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बेहद प्रभाव साली रचना और आपकी रचना देख कर मन आनंदित हो उठा बहुत खूब
आप मेरे भी ब्लॉग का अनुसरण करे
आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
तुम मुझ पर ऐतबार करो ।
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