शुक्रवार, 18 नवंबर 2011

एक मासूम प्यार की आशा

काश मैं होती धरती पर बस उतनी
जिसके उपर सिर्फ़ आकाश बन तुम ही चल पाते
या मैं होती किसी कपास के पौधे की डोडी
जिसके धागे का तुम कुर्ता बना अपने तन पर सजाते
या मैं होती दूर पर्वत पर बहती एक झरना
तुम राही बन वहाँ रुक के अपनी प्यास बुझाते
या मैं होती मस्त ब्यार का एक झोंका
जिसके चलते तुम अपने थके तन को सहलाते
या मैं होती दूर गगन में टिमटिम करता एक तारा
जिसकी दिशा ज्ञान से तुम अपनी मंजिल पा जाते
यूँ ही सज जाते मेरे सब सपने बन के हक़ीकत
यदि मेरी ज़िंदगी के हमसफ़र कही तुम बन जाते !

7 टिप्‍पणियां:

Arun sathi ने कहा…

शायद यही हे प्यार..

madhu ने कहा…

ek asimit sache payar ko pane ki mrigtrishna ki bahut sunder abhivakti he

Always Unlucky ने कहा…

Pretty! This was a really wonderful post. Thank you for your provided information….
From everything is canvas

प्रेम सरोवर ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति है आपकी..। पढ़ना बहुत अच्छा लगा.।
समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर आईयेगा,। धन्यवाद ।

P.N. Subramanian ने कहा…

भावपूर्ण अभिव्यक्ति. बहुत सुन्दर लगी.

kundan ने कहा…

mere paas apke word ko describe karne k liye shabd hi nahi mil paa rahe hai, shabdhin hu mai.
Really Fantastic

kundan ने कहा…

bahut khoob