शनिवार, 14 जुलाई 2012

तुम तो हो उस पार साजन

तुम तो हो उस पार साजन
मैं कैसे तुम तक आऊं
बीच में यह दुनिया सागर सी
तिल तिल जलती जाऊं
चातक सी तृष्णा लिए मन में
बदरा की आस लगाऊं
कैसे नापूं सीमा विरह की
कैसे प्यार मैं पाऊं
दिल में अथाह सागर आंसूं का
पर सूखे पीड़ा में भरे लोचन
कैसे बेडा पार लगाऊं
मंज़िल पल पल मुझे पुकारे
मिलन की नित्य मैं आस लगाऊं
अल्हड मन अनहद गीत स्वर
दर्द का नया गीत बुन जाऊं
करवटों में बीती रतियां
तुम में मैं खो जाऊं
थक गए हैं मन के पखेरू
बोझिल सी हो गई है साँसे
गीत गुजरिया सा बना बंजारिन
मदहोशी सह न पाऊं
कैसे अपना नीड़ बसाऊं
कैसे मैं तुझ तक आऊं
तुम तो हो उस पार साजन
विरह की अग्न से जल जल जाऊं!!