शनिवार, 14 जुलाई 2012

तुम तो हो उस पार साजन

तुम तो हो उस पार साजन
मैं कैसे तुम तक आऊं
बीच में यह दुनिया सागर सी
तिल तिल जलती जाऊं
चातक सी तृष्णा लिए मन में
बदरा की आस लगाऊं
कैसे नापूं सीमा विरह की
कैसे प्यार मैं पाऊं
दिल में अथाह सागर आंसूं का
पर सूखे पीड़ा में भरे लोचन
कैसे बेडा पार लगाऊं
मंज़िल पल पल मुझे पुकारे
मिलन की नित्य मैं आस लगाऊं
अल्हड मन अनहद गीत स्वर
दर्द का नया गीत बुन जाऊं
करवटों में बीती रतियां
तुम में मैं खो जाऊं
थक गए हैं मन के पखेरू
बोझिल सी हो गई है साँसे
गीत गुजरिया सा बना बंजारिन
मदहोशी सह न पाऊं
कैसे अपना नीड़ बसाऊं
कैसे मैं तुझ तक आऊं
तुम तो हो उस पार साजन
विरह की अग्न से जल जल जाऊं!!

11 टिप्‍पणियां:

neelima garg ने कहा…

very good...

neelima garg ने कहा…

very good...

राजेन्द्र अवस्थी ने कहा…

अति सुंदर..।

शिवनाथ कुमार ने कहा…

विरह की पीड़ा को समेटे
भावपूर्ण रचना ...

राजेन्द्र अवस्थी ने कहा…

सम्वेदना युक्त प्रश्न विरह की वेदना मे सने हुए...अति सुंदर।

संजय भास्‍कर ने कहा…

भावपूर्ण रचना

प्रेम सरोवर ने कहा…

बहुत ही खुबसूरत प्रस्तुति । मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा। धन्यवाद।

प्रेम सरोवर ने कहा…

बहुत ही खुबसूरत प्रस्तुति । मेरे नए पोस्ट पर आपका इंतजार रहेगा। धन्यवाद।

Anupama Tripathi ने कहा…

तुम तो हो उस पार साजन
विरह की अग्न से जल जल जाऊं!!
बहुत गहन भाव ....
सुंदर रचना रंजू जी ॥

Rishabh Shukla ने कहा…

very nice poetry ..plz keep blogging ..congr8.

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www.rishabhviewsonmodernsociety.blogspot.com

Rishabh Shukla ने कहा…

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